आपके सवाल गांधी भाई रोहरानंद के जवाब
मनुष्य परावलम्बी होकर जन्म लेता है यदि यह न होता तो उनके अभिमान की कोई सीमा नहीं रहती- महात्मा गांधी _______________________प्रश्न रामसुंदर शुक्ल, इंदौर मध्यप्रदेश संपादक जी आपका कलम बहुत ही प्रेरणादायक है आपको हृदय से हमारी बधाई कृपया मैंने एक प्रश्न का जवाब देने की कष्ट करें आजकल हर एक इंसान अपने आप को सभी से अलग समझता है कुछ अंशों में होता भी है महात्मा गांधी किस तरह आम लोगों से अलग थे इस पर प्रकाश डालें।महात्मा गांधी को दुनिया आज नमन कर रही है उनके रास्ते पर चलने का प्रयास कर रही है उसे पर शोध हो रहे हैं और ऐसा कोई दिन नहीं होता जब महात्मा गांधी को लेकर के दुनिया में वाद विवाद और संवाद ना होता हो ऐसे में हम समझ सकते हैं कि सचमुच गांधी जी एक संत थे महात्मा थे महान व्यक्ति थे आपके दोस्त के जवाब में गांधी जी का एक पत्र मुझे स्मरण हो आया है जिसे मैं सभी पाठकों के लिए प्रस्तुत करना चाहूंगा. महात्मा गांधी ने इंदू लाल भाई को एक पत्र लिखा था जो कुछ इस प्रकार था-“मुझे विश्वास है कि भाई इन्दुलाल याज्ञिक में मेरे नाम जो खुला पत्र लिखा है, वह सभी नें पढ़ लिया होगा। उनके पत्र की प्रत्येक पंक्ति से देशप्रेम झलकता हैं। उसमें अविनय तो कहीं भी नहीं है। यदि ऐसे सद्भाव से लिखे गये पत्र में कोई दोष हो भी तो उसे बतानें की इच्छा नहीं होती। मेरा मन तो यही कहता है कि इस पत्र का उत्तर देना पाप है। उसका कोई उत्तर न देना क्या अपनें-आप में पूर्ण उत्तर नहीं है ? भाई इन्दुलाल बात की गहराई में जानें वाले व्यक्ति हैं। वे प्रत्येक प्रश्न के अन्तिम छोर को समझ लेना चाहते हैं। वे स्वभाव से सिपाही हैं, इसलिए साहसी हैं। वे जैसे सब-कुछ जाननें की इच्छा रखते हैं वैसे ही सब-कुछ करनें की इच्छा रखते हैं। प्रेम-दीवानें होनें के कारण एक क्षण के लिए भी उन्हें कोई काम अपनें सामर्थ्य से बाहर नहीं जान पडता। क्या प्रेम की कोई सीमा होती है ? प्रेम से क्या नहीं किया जा सकता? इसीलिए वे स्वयं अपनी मर्यादा. आंकनें के बजाय यह कार्य ईश्वर पर छोड़ देते हैं। यह गुण भी है और अवगुण भी। उनके इस पत्र से मैं देख पा रहा हूं कि उनपर इन दोनों का प्रभाव है।मैं तो उनके इस प्रेम से सराबोर पत्र का स्वागत ही करता हूं मेरे लिए यह पत्र और ऐसे ही अन्य पत्र चौकीदार हैं। मैं उनसे धीरज सीखता हूं और मुझे उनसे अपनी मर्यादा का भान होता है।भाई इंदुलाल नें जिन त्रुटियों की ओर संकेत किया है और उन्होनें जो दलीलें रखी हैं, उनमें से मैनें एकपर भी विचार न किया हो सो बात नहीं है। मैं उन पर विचार करनें के बावजूद जिस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं, उसे मैनें विनय पूर्वक लोगों के सम्मुख रख दिया है। मैं उसमें उठाई गई अनेक शंकाओं का समाधान तो इन पृष्ठों में कर चुका हूं और समय-समय पर करता भी रहूंगा तथापि मैं जिन शंकाओं का समाधान नहीं कर सकता उसके संबंध में केवल इतना ही कहूंगा कि लोग इन शेष प्रश्नों के उत्तर मेरे आचरण में से ढूंढनें का प्रयत्न करें।प्रश्न – रमेश शर्मा, चांपा, छत्तीसगढ़ *महात्मा गांधी को केंद्रित हास्य विनोद पर आपने एक किताब लिखी है बापूजी का हास्य विनोद सचमुच यह पुस्तक बहुत ही आनंद दायक है कृपया बापू के हास्य रस पर मेरे इस प्रश्न के जवाब में कोई प्रसंग बताएं।* महात्मा गांधी जितने साहसी थे उतने ही धीर गंभीर भी और उतने ही हास्य विनोद से भरपूर उनका व्यक्तित्व था महात्मा गांधी लिखते हैं-“धारवाड़ के सज्जन अपनें कपड़ों का हिसाब देना चाहेंगे तो देंगे : लेकिन उक्त पत्र-लेखक की समस्या का कुछ समाधान तो मैं ही कर दूँ। निर्दोष प्रश्नों के उत्तर निर्दोष ही होनें चाहिए। इन सज्जन में निर्दोष विनोद किया है, इसलिए मुझे उनके इस विनोद में शामिल होनें की इच्छा होती है। उक्त धारवाड़ी भाई के स्थान पर मैं ही इस भाई को कपड़ देनें का ठेका लेता हूँ। इसमें हमें केवल थोड़ा सा परिवर्तन करना होगा। कोई भी 1,000 रूपये के मूल्य के कपड़ों का ठेका 15 रूपये में नहीं ले सकता। हम धारवाड़ी भाई से पूछकर जान सकते हैं कि वे कितनें कपड़ों से गुजारा कर सकेंगे। अपनें कपड़ों पर वे वर्ष भर में 15 रूपये खर्च करते हैं। मेरी लंगोटी इससे अधिक की नहीं आती होगी। तौलिया तो मैं जेल में एक ही व्यवहार में लाता था वे मेरे पास एक वर्ष से भी ज्यादा चला था। मुझे नाक के लिए अलग रूमाल रखनें की आदत है। वह मैं लंगोटी की कतरन में से बना लेता था। वैसे रूमाल तो अब भी मेरे पास बहुत पड़े हैं। लेकिन मैं इन सज्जन से लंगोटी से संतोष मान लेंने की बात नहीं कहता। लेकिन उनको वास्कट, कोट और भारी धोती जोड़े की जरूरत तो नहीं है। चद्दर पहननें के कपड़ों में नहीं गिनी जाती, इसलिए उक्त भाई के गिनती के मुताबिक 4 रूपये का कुरता, 3 रूपये की लंगोटी, 1 रूपये का तौलिया और 1 रूपये की टोपियां- – यह कुल 9 रूपये का खर्च हुआ। आजकल जिनके हाथ में गुजरात की पतवार है यदि उन्हें उनका अनुकरण करतें में शर्म न लगे और वे टोपी के बिना काम चला लें तो वे इससे एक रूपया और बचा लेंगे। यदि वे इतना कपड़ा पहननें के बाद 34 रूपये में से जो कुछ मुझे भेज देंगे तो मैं उसका उपयोग उड़ीसा के लोगों अथवा उन-जैसे अन्य अस्थिपंजरों के लिए करूँगा। कपड़े शरीर ढकनें तथा सर्दी और गर्मी से बचनें के लिए होते हैं। इस दृष्टि से विचार करनें पर हमें घुटनों तक की धोती, कुरते और टोपी के सिवा किसी और कपड़ की जरूरत नहीं है। हमारे देश की आबोहवा में वास्कट और कोट केवल भार रूप हैं। मोतीलाल भी धोती, कुरता और टोपी पहनकर धारा सभा में जानें से नहीं शर्माते । देशबन्धु की पोशाक में भी इससे अधिक कुछ नहीं होते। अली बन्धु धोती के बजाय पाजामा पहनते हैं, बस इतना ही अन्तर है। इन सज्जन नें एक सुझाव दिया है। वह भ्रमपूर्ण है। देश की खातिर किसी का मैला कपड़ा पहनने की जरूरत नहीं होती। जो अपनी धोती और कुरते को सावधानी से धोते हैं और उन्हें साबुन की जरूरत भी नहीं पड़ती। पड़ती भी है तो बहुत कम। मैलापन आलसीपन का लक्षण है। उनका देश भक्ति से कोई संबंध नहीं। खादी धारियों का तो खास धर्म है कि वे अपनें कपड़े दूध जैसे उजले रखें। हां, इतना अवश्य है कि फ्रि अनावश्यक कपड़ों के लिए कोई अनावश्यक नहीं रहता और यदि अधिक कपड़े पहनने ही हों तो उनसे साबुन का अथवा धोबी का खर्च तो बढ़ेगा ही।प्रश्न – मयंक रोचवानी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ आदरणीय संपादक जी महात्मा गांधी महान थे मगर आखिरकार हेतु इंसान एक इंसान कब कैसे महान बन जाता है संत बन जाता है इस पर थोड़ा हमें जानकारी दें।एक छोटी सी चीज है सत्य को आचरण में उतार लेना आप प्रयास करके देखिए इसे कोई हानि नहीं होती मगर मनुष्य सत्य को जीवन में नहीं उठा पाता और जिंदगी भर झूठ का दामन थामें रहता है। महात्मा गांधी ने झूठ अहिंसा जैसे अधिकारों को जीवन से उतरने का औसत के मार्ग पर चलकर के संत बन गए महात्मा बन गए और आज दुनिया को अपने प्रकाश से आलोकित कर रहे हैं उन्होंने नहीं लिखा था-“यह दलील भ्रमक है, इसलिए त्याज्य है। मनुष्य परावलम्बी होकर जन्म लेता है। यदि यह न होता तो उनके अभिमान की कोई सीमा नहीं रहती। gandhishwar.rohra@gmail.com